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मालिनी अवस्थी के किताब चन्दन किवाड़ का एक अंश, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।
निमिया के डाढ़ मईया लावेली झुलुहवा हो की झूली रे झूली ना
निमिया के डाढ़ मईया लावेली झुलुहवा हो की झूली रे झूली ना
हो की झूली रे झूली न
की मईया मोरी गावेली गीतियाँ हो की झूली रे झूली ना
देर शाम का समय था, गाँवों में मन्द बल्बों की रोशनी में घने पेड़ों की हरियाली छाया थोड़ी कालिमा लिए हुए थी और हम सोनभद्र में चोपन के भी आगे एक छोटे से सुन्दर गाँव में थे। पठारी भूभाग में स्थित मिर्जापुर सोनभद्र में हम इस क्षेत्र के प्रसिद्ध जनजातीय लोकनृत्य करमा के मुख्य दल नायक कतवारु के न्योते पर पहुँचे थे।
मुझे देखते ही कतवारु और गुठली दौड़े चले आये अगवानी को। हमने एक-दूसरे को अंकवार में भर रखा था, आसपास ढेर सारे लोग जुट आये थे, मैंने चारों ओर निगाह घुमाई, गाय, बकरियों और मुर्गियों का समवेत स्वर उस अवसर को कैसी दिव्यता प्रदान कर रहा था, क्या कहूँ! गुठली और कतवारु, करमा लोकनृत्य के मुख्य कलाकार! इनसे मेरा परिचय बहुत पुराना है। ‘सोनचिरैया’ की स्थापना के अवसर पर जब मैंने करमा के कलाकारों को बुलाया था, तब शायद पहली बार मुख्यधारा के श्रोताओं, दर्शकों से पहला परिचय हुआ था हमारे इतने सुन्दर जनजातीय लोकनृत्य का!
तब से नेह-स्नेह का…
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